शुक्रवार, 6 जून 2025

एक रात की बात

एक रात की बात

(Anuj kumar)

"ख्याल रखना अपना, और पढ़ाई में मन लगाना," माँ ने टिफिन पकड़ाते हुए कहा।


पिता ने चुपचाप सिर पर हाथ फेरा और बस इतना कहा, "बेटा, ये साल बहुत अहम है। अबकी बार कहीं चूक मत करना।"

गाँव से पहली बार शहर जा रहा मुकेश, दिल में हज़ार सपने लिए। आँखों में भविष्य के सुनहरे रंग और दिल में एक ही ख्वाहिश—"इस बार कुछ करके दिखाना है।"
घरवालों की उम्मीदें इतनी भारी थीं कि लगता था जैसे हर कदम पर उनकी नज़रों का बोझ है।

शुरुआत में मुकेश ने जी-जान से पढ़ाई की। सुबह से कोचिंग, दोपहर में लाइब्रेरी, और रात को देर तक पढ़ाई। पर धीरे-धीरे... सब ढीला पड़ने लगा।

एक साल बाद जब रिज़ल्ट आया, तो सब कुछ वैसा नहीं था जैसा सोचा था। न कोई रैंक, न ही कोई उम्मीद की किरण।
घर फोन किया तो माँ ने पूछा,
"कैसा चल रहा है बेटा सब?"
पिता ने कहा,
"हम जानते हैं तू मेहनती है, बस थोड़ा और ध्यान दे।"

मुकेश को लगा जैसे किसी ने उसके ज़ख्मों पर नमक छिड़क दिया हो। वो झल्ला गया—
"पढ़ाई छोड़ दूँगा मैं! रोज़-रोज़ की पूछताछ से तंग आ गया हूँ!"

माँ चुप हो गई। पिता ने कुछ नहीं कहा, लेकिन मुकेश की आवाज़ में जो टूटन थी, वो सब समझ गए।

कई दिन बीत गए। फिर एक दिन मुकेश ने खुद को समझाया, "नहीं, मैं हार नहीं मानूंगा।"
वह फिर से जुट गया पढ़ाई में। लेकिन इस बार दिल से नहीं, बस ज़िम्मेदारी निभाने जैसा।

इन्हीं दिनों उसकी दोस्ती एक लड़की से हो गई। वो पहली बार था जब किसी ने उसे बिना शर्त समझा था। धीरे-धीरे दोस्ती ने उसकी पढ़ाई से ध्यान भटका दिया।
जो पैसे घर से महीने भर के खर्च के लिए आते, उनका इस्तेमाल अब फोन रिचार्ज, गिफ्ट्स और मूवी टिकटों में होने लगा।

पढ़ाई पीछे छूटती गई... और जब फाइनल रिज़ल्ट का दिन आया, मुकेश ने उसे देखने की हिम्मत तक नहीं की।
उसने चुपचाप अपना कमरा खाली किया और शहर छोड़ दिया।

घर पर किसी को कुछ नहीं बताया। हफ्तों तक कोई खबर नहीं थी। फिर एक दिन किसी जान-पहचान वाले ने बताया—
"आपका बेटा फलां शहर में है, एक प्राइवेट कंपनी में काम करता है। छोटी सी नौकरी है, पर ठीक-ठाक चल रहा है।"

माँ की आंखें भर आईं। पिता ने एक लंबी सांस ली।
लेकिन मुकेश हर रात उस ऑफिस से लौटते हुए एक ही बात सोचता—
"काश... हम वाकई पढ़ लेते।"


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अगर आप चाहें, तो मैं इसका अगला हिस्सा भी लिख सकता हूँ — जैसे कि मुकेश दोबारा पढ़ाई शुरू करता है या उसकी ज़िंदगी में कोई मोड़ आता है।

बूढ़े पेड़ की छांव

बूढ़े पेड़ की छांव

(लेखक: ANUJ KUMAR)


प्रस्तावना

किशुन महतो एक साधारण किसान थे, लेकिन उनके सपनों की कोई सीमा नहीं थी। गरीबी, अभाव और संघर्षों के बीच उन्होंने अपने तीन बेटों को पढ़ा-लिखाकर काबिल इंसान बनाया।

भाग 1: मेहनत की फसल

किशुन खेतों में दिन-रात पसीना बहाते थे। फटे पुराने कपड़े, टूटी चप्पलें और अधजला चूल्हा – सब कुछ सहा, बस बच्चों की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी।

> किशुन (बेटों से):
"हम गरीब हैं, मगर सपने अमीर हैं। एक दिन तुम्हारे कारण हमारा नाम होगा बेटा।"



बड़ी मेहनत के बाद:

अर्जुन पुलिस सेवा में भर्ती हुआ।

सुंदर होमगार्ड बना।

सिद्धो ने प्राइवेट नौकरी शुरू की।


भाग 2: बिखरती डोर

किशुन दा का देहांत हुआ। तीनों बेटे अपने-अपने परिवार और जिम्मेदारियों में उलझ गए।
समय बीता, अर्जुन पुलिस सेवा से रिटायर हुआ। उसके दो बेटे – प्रमोद और वीरेन्द्र, और एक बेटी थी।

रिटायरमेंट के समय अर्जुन को अच्छी-खासी रकम मिली, लेकिन...

> प्रमोद:
"अब्बा को पेंशन मिलती रहेगी, ये पैसे हमें चाहिए।"



> वीरेन्द्र:
"हमने ही तो आपकी सेवा की है अब तक, हमें बराबर हिस्सा मिलना चाहिए!"



अर्जुन बेटों की बातों में आ गया और सब कुछ उन्हें दे दिया।

भाग 3: खोखली उम्मीदें

1-2 साल बीते। अब पेंशन के पैसे को लेकर दोनों बेटों में विवाद शुरू हो गया।
बिना नौकरी, बिना जिम्मेदारी के दोनों सिर्फ पैसे के लिए लड़ते।

> प्रमोद:
"हर बार तू ज़्यादा ले लेता है!"



> वीरेन्द्र:
"मैं ही तो डॉक्टर के पास लेकर जाता हूँ!"



> अर्जुन (थके स्वर में):
"क्या मैं अब किसी का नहीं रहा?"



झगड़ों से तंग आकर अर्जुन ने बेटों का घर छोड़ दिया।

भाग 4: बेटी का आसरा

अब अर्जुन अपनी बेटी के घर रह रहे हैं, जहाँ उन्हें सुकून मिला।

> बेटी:
"बाबूजी, आप मेरे लिए सब कुछ हैं। आप मेरे घर में नहीं, मेरे दिल में रहते हैं।"



> अर्जुन (आँखों में आँसू लिए):
"तू ही मेरी असली औलाद निकली... बेटा तो बस नाम के रहे।"




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समाप्ति व संदेश:

यह कहानी समाज की उस सच्चाई को उजागर करती है जहाँ बुज़ुर्गों की कीमत तब तक होती है, जब तक वे कुछ दे सकते हैं। लेकिन जो संतान देने के बाद ठुकरा दे, वह संतान नहीं, एक भूल है।

बुजुर्गों का सम्मान करें – वो नींव हैं, जिन पर हमारा जीवन खड़ा है।


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आप चाहें तो इसे एक PDF या प्रिंटेबल डॉक्युमेंट में भी बदलवा सकता हूँ, या नाट्यरूपांतरण भी तैयार कर सकता हूँ। बताइए कैसे आगे बढ़ें?

एक रात की बात

एक रात की बात (Anuj kumar) "ख्याल रखना अपना, और पढ़ाई में मन लगाना," माँ ने टिफिन पकड़ाते हुए कहा। पिता ने चुपचाप सिर ...